३७०. विवेक वैराग्य उन्मनी विनट
विवेक वैराग्य उन्मनी विनट। हरिनामें वाट सांपडली ॥ १ ॥
हरिनाम भला हरिकृष्ण भला। दीन उगवला ब्रह्मरूपें ॥ २ ॥
हरी हरी सार वाचेसि उच्चार। सर्व हा श्रीधर पुरे आम्हां ॥ ३ ॥
निवृत्ति निर्माण एकनाम हरी। प्रपंच बोहरी कोटी राशी ॥ ४ ॥